हरियाणा और पंजाब समेत उत्तर भारत के किसान एमएसपी (MSP) की मांगों को लेकर फिर से दूसरी बार दिल्ली बॉर्डर पर आ खड़े हैं और 21 फरवरी को दिल्ली कुच करने की बाते कही जा रहीं हैं |
आखिरकार ये एमएसपी (MSP) क्या है जिसके लिए किसान इतने दिनों से आंदोलन पर खड़े हैं ? और आखिरकार सरकार को एमएसपी (MSP) देने के क्या दिक्कतें आती है ? और सरकार किसानों से अनाज खरीदे ये जरूरी है या नही ?
ऐसे ही कही सवालों का जवाब लेकर आए हैं कैशखबर के इस आर्टिकल में और इन सभी सवालों के जवाब हम 8 अलग अलग पॉइंट्स में समझने वाले हैं –
किसानों की प्रमुख मांग फसलों की MSP पर खरीद की गारंटी का कानून और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से कीमत तय करवाना है।
एमएसपी(MSP) क्या है ?
MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस, जिसे न्यूनतम समर्थन मूल्य भी कहते हैं। किसानों के हित के लिए सरकार ने ये व्यवस्था बनाई है। इसके तहत सरकार फसल की एक न्यूनतम कीमत तय करती है। अगर बाजार में फसलों के दाम कम भी हो जाएं, तो किसान आश्वस्त रहता है कि उसकी फसल सरकार कम से कम इस कीमत में जरूर खरीद लेगी।
इसे ऐसे समझिए कि किसी फसल की MSP 1000 रुपए क्विंटल है। खुले मार्केट में वही फसल 500 रुपए में मिल रही है, तो भी सरकार किसान से वह फसल 1000 रुपए क्विंटल में ही खरीदेगी। इसे ही न्यूनतम समर्थन मूल्य कहा जाता है।
आमतौर पर MSP किसान की लागत से कम से कम डेढ़ गुना ज्यादा होती है। हालांकि MSP सरकार की नीति है, कानून नहीं। इसे सरकार घटा-बढ़ा सकती है। बंद भी कर कर सकती है। किसानों को यही डर सताता है।
क्या सरकार सभी फसलों पर MSP देती है, ये कैसे तय होता है?
फसलों का उचित दाम दिए जाने के लिए केंद्र सरकार ने 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइज (CACP) का गठन किया था। CACP ही MSP तय करता है।
देश में पहली बार 1966-67 में MSP की दर से फसलों की खरीदी की गई थी। केंद्र सरकार फिलहाल 23 फसलों के लिए MSP तय करती है। राज्य सरकार भी इसे लागू कर सकती है।
जब सरकार MSP दे रही है फिर किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं?
किसानों की सरकार से दो प्रमुख मांगें हैं। पहली MSP स्वामीनाथन आयोग के अनुसार दीजिए। दूसरी- MSP की लीगल गारंटी दीजिए यानी इसके लिए कानून बनाइए।
किसान चाहते हैं कि बाहर भी कभी वो फसल बेचें तो एमएसपी की दर पर ही खरीदी हो। कम कीमत पर खरीदी करने वाले व्यापारियों पर आपराधिक केस चले। दूसरी फसलों को भी एमएसपी के दायरे में लाया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आश्वासन दे चुके हैं कि MSP पर ही खरीदी होगी, लेकिन किसान कानून की मांग कर रहे हैं।
MSP से 4 प्रमुख फायदे होते हैं...
• सुरक्षित आमदनी: किसानों को उनकी फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य की गारंटी देता है। जब मार्केट में उतार-चढ़ाव आते हैं तो इससे किसान को स्थिर और अनुमानित आय तय होती है।
• स्थिर मूल्य: MSP के जरिए बाजार की कीमतें स्थिर होती हैं। ये मार्केट में तेजी से होने वाले उतार-चढ़ाव को रोकता है।
• उत्पादन को बढ़ावा: एमएसपी एक तरह से गारंटी होती है। किसान ने जो फसल लगाई है। वो सरकार MSP के माध्यम से ज्यादा दाम पर खरीदेगी। जब खरीदने वाला तय होता है तो किसान ज्यादा मात्रा में उत्पादन करता है
• फूड सिक्योरिटी: एमएसपी किसानों को भरोसा दिलाती है कि वो खाद्य फसलों की खेती करें। जब किसान खाद्य
फसलें लगाता है तो देश में खाद्य की कमी नहीं होती है। इससे सरकार को आयात कम करना पड़ता है और स्टॉक होने से फूड सिक्योरिटी बनी रहती है।
MSP की गणना कैसे होती है?
2004 में कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स यानी किसान आयोग बनाया था। इसके अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन थे। इस कारण इसे स्वामीनाथन आयोग भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य किसानों से जुड़ी समस्याओं का पता लगाकर उनका हल पता करना था।
दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 के बीच किसान आयोग ने 5 रिपोर्ट तैयार की थीं। इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रिपोर्ट MSP को लेकर थी। आयोग ने बताया कि MSP क्या होना चाहिए।
आयोग ने जो रिपोर्ट दी थी, उसके आधार पर UPA सरकार किसान आयोग की जगह राष्ट्रीय किसान नीति लाई। इसमें सरकार ने वादा किया कि वो किसानों की आय बढ़ाएगी। उन्हें उच्च किस्म के बीज उपलब्ध कराएगी। इसके अलावा कई बातें की गईं, लेकिन सरकार ने ये नहीं कहा कि वो एस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करेगी।
MSP पर स्वामीनाथन आयोग ने क्या फॉर्मूला दिया था?
स्वामीनाथन आयोग ने कहा कि जो एमएसपी होगा वह फसल की लागत से 50% होगा। मान लीजिए कि एक फसल को उगाने में किसान के 1000 रुपए लगे। इसमें 50% यानी 500 रुपए जोड़ा जाए तो कुल MSP 1500 रुपए होगी। इसे C2+50% फॉर्मूला कहा जाता है। C2 मतलब कॉस्ट है।
कॉस्ट यानी लागत तीन प्रकार के फॉर्मूले से तय होती है-
• A2 फॉर्मूलाः इसमें जो भी डायरेक्ट खर्च किया गया है, उसे शामिल किया जाता है। डायरेक्ट कॉस्ट मतलब बीज, खाद, कीटनाशक, लेबर, किराए पर खेत, सिंचाई या सिंचाई-जुताई में लगने वाला ईंधन।
• A2+FL फॉर्मूलाः इसमें ऊपर वाले A2 के अलावा अनपेड लेबर को भी जोड़ा जाता है। मतलब कि जब किसान कोई फसल लगाता है तो उसमें उसकी पत्नी, बच्चे और रिश्तेदार भी काम करते हैं, जिन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाता। इसमें इस अनपेड फैमिली लेबर को भी जोड़ा जाता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि अगर ये काम नहीं करते तो किसी मजदूर को पैसा देकर काम करवाना पड़ता। इसे भी कॉस्ट में जोड़ा जाता, इसलिए परिवारवालों की मजदूरी भी जोड़ी जाती है।
• C2 फॉर्मूलाः ज्यादातर किसानों के पास खुद की जमीन होती है। यदि नहीं होती तो वो किसान को किराए पर खेत लेकर फसल उगानी पड़ती। इसमें स्थाई पूंजी जैसे खेत या कुएं आदि के किराए को भी जोड़ा गया है। एमएस स्वामीनाथन ने सुझाव दिया कि इन सबको जोड़कर 50% अधिक दिया जाना चाहिए।
अपने फॉर्मूले से MSP दे रही सरकारें
MSP को मंजूरी देने वाली केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA) ने पिछले साल 18 अक्टूबर को अपने बयान में A2+FL कॉस्ट को उत्पादन की कॉस्ट माना है। इसी आधार पर उसने एमएसपी गणना कर उसकी घोषणा की थी।
2018 में सरकार ने कहा था कि हम लागत का डेढ़ गुना देंगे। 2018 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट भाषण में कहा था कि हम किसानों को लागत का डेढ़ गुना देने जा रहे हैं। आगे जब जानकारी आई तो पता चला कि वो डेढ़ गुना A2+FL लागत का था। कुल मिलाकर किसान को वो नहीं दिया जा रहा है, जो स्वामीनाथन कमेटी ने सिफारिश की थी।
अगर सरकार MSP पर किसानों की मांगें मान ले तो सरकार और खजाने पर क्या-क्या फर्क पड़ेगा?
यदि सरकार ने किसानों की मांगें मान लीं तो उस पर जबरदस्त वित्तीय भार आ जाएगा। एक रिसर्च के अनुसार यदि सरकार एमएसपी वाली सभी 23 फसलों का पूरा उत्पादन खरीद लेती है तो सरकारी खजाने पर इसका गहरा प्रभाव होगा। ये बहुत ही भारी खर्च होगा।
यदि ये भी मान लें कि सरकार केवल मंडियों से उन्हीं फसलों को खरीदेगी, जिनकी खरीदी एमएसपी के नीचे होती है, तो भी सरकार को वित्तीय वर्ष 2023 के लिए लगभग 6 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। एजेंसी के रिसर्च में MSP वाली 23 में से 16 फसलों को ही शामिल किया गया है।
ये वो फसलें हैं, जिनकी कुल उत्पादन में 90% हिस्सेदारी है। पिछले 7 साल का बजट देखें तो पता चलता है कि सरकार हर साल इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए औसतन 10 लाख करोड़ रुपए देती है। 2016 से 2023 से सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए 67 लाख करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
अगर एमएसपी की गारंटी को लागू किया जाता है, तो हो सकता है सरकार को डिफेंस बजट कम करना होगा अथवा सरकार को टैक्स बहुत ज्यादा बढ़ाना पड़ेगा। यही कारण है कि सरकार इसे लागू करने से बच रही है।
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क्या स्वामीनाथन फॉर्मूले से MSP देने से सरकार पर 10 लाख करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा?
इंडस्ट्री के लिए एग्रीकल्चर उत्पाद रॉ मटेरियल हैं। अगर रॉ मटेरियल के दाम बढ़ जाते हैं, तो इंडस्ट्री का प्रॉफिट कम हो जाता है। सरकार पर 10 लाख करोड़ का भार आ जाएगा। ऐसी बातें करके देश को डराया जा रहा है, ताकि कॉर्पोरेट को कोई घाटा न हो जाए। इन अनुमानों का कोई आधार नहीं है।
यदि किसानों के लिए MSP कानूनी रूप से लागू होता है तो देश की GDP डबल डिजिट में दौड़ेगी। देश की 50% आबादी यानी किसानों के पास जब पैसा आएगा, तो खर्च भी होगा। यही पैसा मार्केट में आएगा और इकोनॉमी बूम करेगी। कुल मिलाकर MSP से देश का फायदा ही होगा।
MSP को लेकर सरकार ने एक कमेटी बनाई थी, उसका क्या हुआ?
नवंबर 2021 में न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए सरकार ने एक कमेटी का गठन किया गया था, लेकिन दो साल बाद भी अब तक इसकी कोई रिपोर्ट नहीं आई है। सरकार ने PM नरेंद्र मोदी के ऐलान के करीब 8 महीने बाद 12 जुलाई, 2022 को कमेटी की स्थापना की थी।
कमेटी में अध्यक्ष सहित 29 सदस्य शामिल हैं। इनमें 18 सरकारी अधिकारी या सरकारी एजेंसियों और कॉलेजों से जुड़े एक्सपर्ट हैं। कमेटी के अध्यक्ष संजय अग्रवाल हैं। ये केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव रह चुके हैं।
कमेटी में भाजपा से जुड़े संगठनों के कई लोग हैं। ये वो लोग हैं जिन्होंने उन कृषि कानूनों का समर्थन किया था, जिन्हें केंद्र सरकार ने निरस्त कर दिया है।
अब हम समझेंगे की आखिरकार सरकार किसानों से फसल लेती क्यों है यदि सरकार किसानों से फसल लेने को मना कर देती है तो उसके क्या क्या प्रभाव होंगे ये जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇👇
Disclaimer :- इस लेख में दी गई जानकारी केवल जानकारी के लिए है। इसे निवेश सलाह नहीं माना जाना चाहिए. कोई भी निवेश करने से पहले आपको निवेश सलाहकारों से सलाह लेनी चाहिए। कैश खबर निवेश से जुड़े किसी भी मामले में जिम्मेदार नहीं है |
एमएसपी(MSP) क्या है ?
MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस, जिसे न्यूनतम समर्थन मूल्य भी कहते हैं। किसानों के हित के लिए सरकार ने ये व्यवस्था बनाई है। इसके तहत सरकार फसल की एक न्यूनतम कीमत तय करती है। अगर बाजार में फसलों के दाम कम भी हो जाएं, तो किसान आश्वस्त रहता है कि उसकी फसल सरकार कम से कम इस कीमत में जरूर खरीद लेगी।
सरकार सभी फसलों पर MSP देती है, ये कैसे तय होता है?
फसलों का उचित दाम दिए जाने के लिए केंद्र सरकार ने 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइज (CACP) का गठन किया था। CACP ही MSP तय करता है।देश में पहली बार 1966-67 में MSP की दर से फसलों की खरीदी की गई थी। केंद्र सरकार फिलहाल 23 फसलों के लिए MSP तय करती है। राज्य सरकार भी इसे लागू कर सकती है।
जब सरकार MSP दे रही है फिर किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं?
किसान चाहते हैं कि बाहर भी कभी वो फसल बेचें तो एमएसपी की दर पर ही खरीदी हो। कम कीमत पर खरीदी करने वाले व्यापारियों पर आपराधिक केस चले। दूसरी फसलों को भी एमएसपी के दायरे में लाया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आश्वासन दे चुके हैं कि MSP पर ही खरीदी होगी, लेकिन किसान कानून की मांग कर रहे हैं।
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