हाल ही में, इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन (Kris Gopalakrishnan)सहित 17 अन्य व्यक्तियों के खिलाफ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। यह मामला बेंगलुरु के नागर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया है और यह देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले के केंद्र में दुर्गप्पा नामक शिकायतकर्ता हैं, जो अनुसूचित जनजाति ‘बोवी’ समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। दुर्गप्पा भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के सेंटर फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी में पूर्व फैकल्टी सदस्य थे। उनका आरोप है कि 2014 में उन्हें झूठे आरोपों में फंसाकर संस्थान से बर्खास्त कर दिया गया।
शिकायतकर्ता के आरोप:
1. हनी ट्रैप का आरोप: दुर्गप्पा का दावा है कि उन्हें झूठे ‘हनी ट्रैप’ मामले में फंसाया गया।
2. जातिगत भेदभाव: कार्यकाल के दौरान उन्हें जातिगत गालियों और धमकियों का सामना करना पड़ा।
3. साजिश के आरोप: दुर्गप्पा ने आरोप लगाया है कि उनके खिलाफ उच्च स्तर पर साजिश रची गई।
एफआईआर में शामिल नाम:
एफआईआर में क्रिस गोपालकृष्णन के अलावा IISc के पूर्व निदेशक बालाराम, गोविंदन रंगराजन, और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के नाम शामिल हैं। इन पर अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं।
आरोपों का प्रभाव और प्रतिक्रिया:
मामले में गोपालकृष्णन और अन्य आरोपियों ने अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। इस प्रकरण ने शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव और असमानता के मुद्दे को उजागर किया है।
कानूनी प्रक्रिया:
मामले की सुनवाई बेंगलुरु की 71वीं सिटी सिविल और सत्र न्यायालय (CCH) में हुई, जहां पुलिस को जांच के निर्देश दिए गए। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सभी पहलुओं पर निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है।
शैक्षणिक संस्थानों में भेदभाव:
यह घटना इस बात को रेखांकित करती है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न आज भी मौजूद हैं। यह न केवल शैक्षिक वातावरण को प्रभावित करता है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों के मनोबल को भी गिराता है।
समाज के लिए संदेश:
जातिगत भेदभाव जैसे मुद्दों पर समाज और प्रशासन को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। केवल कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसे लागू करना और निष्पक्षता सुनिश्चित करना भी जरूरी है।
निष्कर्ष:
इंफोसिस के सह-संस्थापक और IISc जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों पर इस तरह के आरोप गंभीर चिंता का विषय हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा, समाज, और कानून को एक साथ काम करना होगा।